Friday May 15, 2009
शब्द
प्राण मुझे दिए तन में
स्पर्श तेरा मैं कर पाऊँ
अनुभव ... अधरामृत पीकर-चखकर
संपर्क तुम्हारा, हे प्रियतमा!
सानिग्ध्य -- दैहिक, लौकिक, और अलौकिक
झंकृत हो उठे कंठ तार
जिह्वा पर भी आई बहार
दंत अधर भी हुए स्फुट
पर हाय!
शब्द नहीं मिले मुझको
शब्द नहीं मिले मुझको॥
अवतंस कुमार, १४ मई २००९, क्रिस्टल लेक, इलिनॉय